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Wednesday, November 2, 2011

gajal

उनको देखा तो पलट आये जमाने कितने
फिर हरे होने लगे जखम पुराने कितने
मशवरा मेरी वसीयत का मुझे देते हैं
हो गए है कितने मेरे मासूम अपने
मेरे बचपन की वो बस्ती भी अजब बस्ती थी
दोस्त बन जाते थे एक पल में बेगाने कितने
कितनी खामोश है अब इन आँखों की गली
इनमे बसते थे कभी ख्वाब सुहाने कितने

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