उनको देखा तो पलट आये जमाने कितने
फिर हरे होने लगे जखम पुराने कितने
मशवरा मेरी वसीयत का मुझे देते हैं
हो गए है कितने मेरे मासूम अपने
मेरे बचपन की वो बस्ती भी अजब बस्ती थी
दोस्त बन जाते थे एक पल में बेगाने कितने
कितनी खामोश है अब इन आँखों की गली
इनमे बसते थे कभी ख्वाब सुहाने कितने
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