जिधर देखो चहु ओरहै महगाई का शोर
बढ़ी रेट सुन सुन कर के ,हम तो हो गए बोर
हम तो हो गए बोर,हाईटेक हुई दीवाली,
एक जेब तो कट गयी,दूसरी हो गयी खाली
सुबह सुबह जब हम गए लेने सब्जी मंडी,
बीस रुपिया आलू मिले चालीस मिली भाई भिन्डी
चालीस मिली भाई भिन्डी गोभी का तो कहना क्या था
थोड़ी सस्ती मूली थी, धनिया भी महगा था
पाव भर धनिया लिया,पाव भर ली मिर्चा
पत्नी को आ कर सुना दिया अब तक का सारा खर्चा
अब तक का सारा खर्चा,हमने कहा चटनी पीसो
इस दीवाली पर बस चटनी रोटी खीचो
चटनी रोटी खीच ओढ़ कर सो गए चादर
कहाँ गए वो लोग जो बनते हैं पब्लिक के गोड फादर
बड़े ज्ञान से कहते है बत्तीस रूपये पाने वाला अमीर
आलू की सब्जी खाऊ सोच सोच पनीर
सोच सोच पनीर पत्नी ने हमें जगाया
थमा प्याली चाय की और ये फ़रमाया
थोड़ी खील ले आयी,थोड़े से पूजा के लिए बताशे
बच्चे देख ललचा रहे हैं पड़ोसिओ के पटाखे
पड़ोसिओ के पटाखे थोडा सा तो कुछ ले आओ
मुझ पर नहीं पर बच्चो पर तो थोडा तरस खाओ
हम ने कहा महगाई ने कर दी जेब खाली
अभी तलक जेसे तेसे हमने अपनी इज्जत बचा ली
सुन कर पत्नी के चेहरे से जेसे उड़ गयी लाली
उफ़ कमबख्त गरीबो की भी होती है क्या कोई दीवाली
अच्छा है।
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